Highest Long Term Return: लॉन्ग टर्म रिटर्न में सबसे आगे रहे ये इक्विटी फंड, 10 साल में 8 गुना कर दी दौलत, SIP ने भी दिखाया मैजिक

Mutual Funds with Best SIP Returns: इक्विटी म्यूचुअल फंड लंबी अवधि में वेल्थ क्रिएशन के लिए बेस्ट इनवेस्टमेंट ऑप्शन माने जाते हैं. आप इनमें एसआईपी के जरिये निवेश करके भी बड़ा कॉर्पस जुटा सकते हैं.

Equity Mutual Funds with Best SIP Return: लॉन्ग टर्म में वेल्थ क्रिएशन करना हो, तो इक्विटी म्यूचुअल फंड को इसका सबसे बेहतर तरीका माना जाता है. आप चाहें तो इनमें लंपसम (Lumpsum) यानी एकमुश्त भी निवेश कर सकते हैं, लेकिन सिस्टमैटिक इनवेस्टमेंट प्लान (SIP) के जरिये थोड़ा-थोड़ा करके भी पैसे डालना रिस्क-रिटर्न के बीच संतुलन के लिहाज से बेहतर तरीका माना जाता है. आज हम आपको ऐसे ही 11 इक्विटी म्यूचुअल फंड्स के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्होंने पिछले 10 साल के दौरान एकमुश्त और SIP इनवेस्टमेंट पर सबसे ज्यादा रिटर्न दिया है.

10 साल में सबसे ज्यादा रिटर्न देने वाले टॉप 11 फंड

यहां हम जिन 11 इक्विटी फंड्स का जिक्र करने जा रहे हैं, वे अलग-अलग कैटेगरी में आते हैं. लेकिन इन सभी ने पिछले 10 साल में SIP और लंपसम इनवेस्टमेंट पर जबरदस्त रिटर्न दिए हैं. एकमुश्त निवेश करने वालों के पैसों को इन फंड्स ने 10 साल में करीब 8.5 गुना तक कर दिया है, जबकि एसआईपी पर भी सालाना 24% से 28% तक रिटर्न दिया है. इनमें से कई फंड्स ने 10 हजार रुपये की मंथली SIP को 10 साल में 50 लाख रुपये या उससे भी ज्यादा कर दिया है.

Nippon India Small Cap Fund (Direct Plan)

1 लाख रुपये एकमुश्त निवेश की 10 साल बाद वैल्यू : 8,45,627 रुपये (CAGR : 23.78%)

10 हजार रुपये मंथली SIP की 10 साल बाद वैल्यू : 51,38,165 रुपये (CAGR : 27.38%)

एक्सपेंस रेशियो : 0.68%

2. Motilal Oswal Midcap Fund (Direct Plan)

1 लाख रुपये एकमुश्त निवेश की 10 साल बाद वैल्यू : 7,64,228 रुपये (CAGR : 22.53%)

10 हजार रुपये मंथली SIP की 10 साल बाद वैल्यू : 50,42,717 रुपये (CAGR : 27.03%)

एक्सपेंस रेशियो : 0.57%

3. HSBC Small Cap Fund (Direct Plan)

1 लाख रुपये एकमुश्त निवेश की 10 साल बाद वैल्यू : 7,42,951 रुपये (CAGR : 22.19%)

10 हजार रुपये मंथली SIP की 10 साल बाद वैल्यू : 45,68,640 रुपये (CAGR : 25.21%)

एक्सपेंस रेशियो : 0.68%

4. Quant ELSS Tax Saver Dir (Direct Plan)

1 लाख रुपये एकमुश्त निवेश की 10 साल बाद वैल्यू : 7,26,113 रुपये (CAGR : 21.91%)

10 हजार रुपये मंथली SIP की 10 साल बाद वैल्यू : 43,64,811 रुपये (CAGR : 24.37%)

एक्सपेंस रेशियो : 0.59%

5. Quant Small Cap Fund (Direct Plan)

1 लाख रुपये एकमुश्त निवेश की 10 साल बाद वैल्यू : 6,93,016 रुपये (CAGR : 21.34%)

10 हजार रुपये मंथली SIP की 10 साल बाद वैल्यू : 53,24,514 रुपये (CAGR : 28.04%)

एक्सपेंस रेशियो : 0.64%

6. Axis Small Cap Fund (Direct Plan)

1 लाख रुपये एकमुश्त निवेश की 10 साल बाद वैल्यू : 6,85,252 रुपये (CAGR : 21.20%)

10 हजार रुपये मंथली SIP की 10 साल बाद वैल्यू : 43,93,692 रुपये (CAGR : 24.49%)

एक्सपेंस रेशियो : 0.56%

7. Edelweiss Mid Cap Fund (Direct Plan)

1 लाख रुपये एकमुश्त निवेश की 10 साल बाद वैल्यू : 6,76,230 रुपये (CAGR : 21.04%)

10 हजार रुपये मंथली SIP की 10 साल बाद वैल्यू : 44,64,342 रुपये (CAGR : 24.78%)

एक्सपेंस रेशियो : 0.39%

8. Invesco India Mid Cap Fund (Direct Plan)

1 लाख रुपये एकमुश्त निवेश की 10 साल बाद वैल्यू : 6,44,404 रुपये (CAGR : 20.46%)

10 हजार रुपये मंथली SIP की 10 साल बाद वैल्यू : 43,36,395 रुपये (CAGR : 24.25%)

एक्सपेंस रेशियो : 0.58%

9. Quant Infrastructure Fund – (Direct Plan)

1 लाख रुपये एकमुश्त निवेश की 10 साल बाद वैल्यू : 6,24,255 रुपये (CAGR : 20.08%)

10 हजार रुपये मंथली SIP की 10 साल बाद वैल्यू : 49,24,025 रुपये (CAGR : 26.59%)

एक्सपेंस रेशियो : 0.66%

10. ICICI Prudential Technology Fund (Direct Plan)

1 लाख रुपये एकमुश्त निवेश की 10 साल बाद वैल्यू : 6,21,389 रुपये (CAGR : 20.02%)

10 हजार रुपये मंथली SIP की 10 साल बाद वैल्यू : 43,68,199 रुपये (CAGR : 24.38%)

एक्सपेंस रेशियो : 0.98%

11. Invesco India Infrastructure Fund (Direct Plan)

1 लाख रुपये एकमुश्त निवेश की 10 साल बाद वैल्यू : 5,99,774 रुपये (CAGR : 19.60%)

10 हजार रुपये मंथली SIP की 10 साल बाद वैल्यू : 44,72,708 रुपये (CAGR : 24.82%)

एक्सपेंस रेशियो : 0.74%

यहां सभी आंकड़े डायरेक्ट प्लान के दिए गए हैं, जिनमें एक्सपेंस रेशियो कम रहता है. रेगुलर प्लान का एक्सपेंस रेशियो अधिक रहने की वजह से उनका रिटर्न डायरेक्ट प्लान के मुकाबले कुछ कम होता है.

रिस्क समझने के बाद करें फैसला

लॉन्ग टर्म इनवेस्टमेंट के जरिये वेल्थ क्रिएशन में दिलचस्पी रखने वालों के लिए इक्विटी फंड बेहतरीन ऑप्शन होते हैं. लेकिन निवेश का फैसला करने से पहले निवेश से जुड़े रिस्क को समझना जरूरी है, क्योंकि इन पर मार्केट में होने वाले उतार-चढ़ावों का सीधा असर पड़ता है. इक्विटी फंड होने की वजह से ऊपर दिए गए सभी सभी फंड का रिस्क लेवल बहुत अधिक (Very High) है. लेकिन आम तौर पर स्मॉल कैप फंड को मिड कैप और लार्ज कैप की तुलना में ज्यादा जोखिम भरा माना जाता है. सेक्टोरल और थीमैटिक फंड भी हाई रिस्क वाले निवेश होते हैं. इसलिए निवेश का फैसला करने से पहले अपनी जोखिम बर्दाश्त करने की क्षमता को अच्छी तरह जांच-परख लें.

(डिस्क्लेमर: इस लेख का मकसद सिर्फ जानकारी देना है, निवेश की सलाह देना नहीं. यह जरूरी नहीं है कि किसी म्यूचुअल फंड का पिछला रिटर्न भविष्य में भी जारी रहे. निवेश से जुड़े फैसले अपने इनवेस्टमेंट एडवाइजर की सलाह से ही करें.)

UPA सरकार के टाइम में बढ़े बैड लोन, अरुण जेटली ने सुधारा बैंकिंग सिस्टम; रघुराम राजन ने कही ये बात

पूर्व RBI गवर्नर रघुराम राजन ने कहा कि 2008 में वैश्विक आर्थिक संकट से पहले बैंक खुलकर लोन बांटते थे और कारोबारियों के पीछे चेक बुक लेकर पूछते थे, तुम्हे कितना लोन चाहिए.

Raghuram Rajan: भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने हाल में यूपीए 2 और मोदी सरकार के कार्यकाल में बैंकिंग सिस्टम पर चर्चा की. उन्होंने बताया कि यूपीए 2 की नीतियों की वजह से बैंकों के पास बैड लोन बढ़ गया था.

पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने 2013 में यूपीए 2 के शासनकाल में ही RBI के गवर्नर का पद संभाला था. उन्होंने बताया कि इसके इसके बाद उन्होंने बैंकों के बैड लोन को संभालने की कोशिश की, जिसमें 2014 में वित्त मंत्री बने अरुण जेटली ने काफी मदद की. इसके साथ ही पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कई और बातें कहीं, जिनके बारे में हम यहां विस्तार से बता रहे हैं.

यूपीए का नाम लिए बिना कही ये बात

राजन ने हाल ही में एक इंटरव्यू दिया है, जिसमें उन्होंने यूपीए का नाम लिए बिना कहा कि भारत में वैश्विक वित्तीय संकट के अलावा भ्रष्टाचार भी बड़ी समस्या थी. इन्हीं सब वजहों के चलते कई प्रोजेक्ट को मंजूरी मिलने में देरी हुई. इसके साथ ही उन्होंने कहां कि कई प्रोजेक्ट पर्यावरण की मंजूरी के चलते भी लेट हुए. अपने इंटरव्यू में उन्होंने आगे बताया कि इन सब चीजों का असर बैंक के लोन सिस्टम पर पड़ा और प्रोजेक्ट टाइम पर शुरू न होने की वजह से बैंक की रकम फंसी और बैड लोन बढ़ गए.

बैंक घूमते थे कारोबारियों के पीछे

राजन ने कहा कि 2008 में वैश्विक आर्थिक संकट से पहले बैंक खुलकर लोन बांटते थे और कारोबारियों के पीछे चेक बुक लेकर पूछते थे, तुम्हे कितना लोन चाहिए. उन्होंने बताया कि ऐसा इसलिए होता था, क्योंकि उस समय प्रोजेक्ट टाइम पर पूरे हो जाते थे और बैंक की रकम वापस आ जाती थी, लेकिन आर्थिक संकट ने स्थिति बदल दी.

मोरेटोरियम पॉलिसी ने बढ़ाए बैड लोन

RBI के पूर्व गवर्नर ने मोरेटोरियम पॉलिसी की खामियां गिनाते हुए कहा कि 2008 के आर्थिक संकट से पहले बैंक खुलकर पैसा बांट रहे थे. बिना जरूरी प्रक्रिया पूरी किए दिए गए इन कर्ज के बाद आर्थिक संकट ने हालात बदल दिए और इसे और बुरा सरकार की नीतियों ने कर दिया. राजन ने कहा, मुझसे पहले जो गवर्नर थे, उन्होंने बैंकों के बुरे कर्ज के लिए मोरेटोरियम (ऋण स्थगन) की शुरुआत की. इसके कारण बैंकों की रकम तो फंसी, लेकिन वे इस रकम को एनपीए में भी नहीं दिखा पा रहे थे. राजन ने कहा, पद संभालने के बाद मैंने मोरेटोरियम नीति खत्म कर दी.

जेटली ने की NPA कम करने में की मदद

आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने तब के वित्त मंत्री अरुण जेटली की तारीफ करते हुए कहा कि, बैंकों के NPA को कम करने में तब के वित्त मंत्री रहे अरुण जेटली ने बहुत मदद की. उन्होंने बताया कि उस समय सरकार ने बैंकों को बचाने के लिए जो फैसले लिए वे बहुत जरूरी थे.

उन्होंने बताया कि आरबीआई को एनपीए की पहचान करनी थी और सरकार को बैंकों में और पूंजी डालनी थी. मैंने इस बारे में तब के वित्त मंत्री अरुण जेटली को बताया तो उन्होंने कहा, जो जरूरी है वो कीजिए.

क्या दिसंबर में लोन EMI कम करेगी RBI? निर्मला सीतारमण ने दिए बड़े संकेत

दिसंबर के महीने में आरबीआई की एमपीसी होने वाली है. वैसे कई जानकार इस बात से इनकार कर चुके हैं कि आरबीआई दिसंबर के महीने में ब्याज दरों में कोई बदलाव करेगा. वैसे अक्टूबर के महीने में आरबीआई गवर्नर ने आरबीआई के रुख में बदलाव किया था और कहा था कि आने वाले दिनों में कभी ब्याज दरों में कटौती जा सकती है.

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने फरवरी 2023 से रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया है. मई 2000 से ब्याज दरों में कोई कटौती देखने को नहीं मिली है. महंगाई की दर आरबीआई के टॉलरेंस लेवल से ऊपर यानी 6 फीसदी से ज्यादा हो गई है. ऐसे में दिसंबर के महीने में आरबीआई एमपीसी रेपो रेट में कटौती करेगा? इस सवाल का जवाब काफी आसान है और वो है नहीं. वहीं दूसरी ओर देश की वित्त मंत्री ने एक कार्यक्रम के दौरान ऊंची ब्याज दरों पर चिंता जाहिर की.

उन्होंने कहा कि बैंकों को इन्हें कम करने के बारे में सिर्फ सोचना ही नहीं चाहिए, बल्कि इसमें कटौती के लिए कदम उठाने चाहिए. अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या आरबीआई यानी देश के बैंकों का रेगुलेटर दिसंबर महीने में ब्याज दरों में कटौती को लेकर कोई फैसला लेगा? सवाल बहुत मुश्किल है. बढ़ती महंगाई के बीच देश की वित्त मंत्री का ये बयान आरबीआई के लिए बड़ा चैलेंज हो गया है. आइए आपको भी बताते हैं कि आखिर उन्होंने ऐसा क्या कह दिया है?

लोन दरों को कम करने की जरुरत

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सोमवार को कहा कि बैंक ब्याज दरें कुछ लोगों के लिए बेहद दबाव वाली हैं, और उन्हें सस्ता बनाने के लिए कदम उठाने की जरूरत है. वित्त मंत्री ने आर्थिक वृद्धि में सुस्ती की आशंका के बारे में व्यापक चिंताओं के बीच भरोसा दिलाया कि सरकार घरेलू और वैश्विक चुनौतियों से पूरी तरह अवगत है. उन्होंने कहा कि अनावश्यक चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है. सीतारमण ने कहा कि महत्वपूर्ण बात यह है कि जब आप भारत की वृद्धि की आवश्यकताओं को देखते हैं, और कई तबकों से यह राय सामने आती है कि उधार लेने की लागत वास्तव में बेहद दबाव बढ़ाने वाली है.

यहां पर फोकस करें बैंक

ऐसे समय में जब हम चाहते हैं कि उद्योग तेजी से आगे बढ़ें और क्षमता निर्माण हो, बैंक ब्याज दरें कहीं अधिक सस्ती होनी चाहिए. उन्होंने भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के वार्षिक व्यापार और आर्थिक सम्मेलन में बैंकों से लोन देने के अपने मूल काम पर ध्यान केंद्रित करने को कहा. वित्त मंत्री ने कहा कि बीमा उत्पादों की गलत ढंग से बिक्री भी अप्रत्यक्ष रूप से किसी व्यक्ति या संस्था के लिए कर्ज लेने की लागत को बढ़ाती है.

आरबीआई के लिए कोई संकेत तो नहीं

देश की वित्त मंत्री की ओर से ये कहना है कि बैंकों को ब्याज दरों को कम करने की जरुरत है, ये आरबीआई के लिए कोई संकेत तो नहीं है. दिसंबर के महीने में आरबीआई की एमपीसी होने वाली है. वैसे कई जानकार इस बात से इनकार कर चुके हैं कि आरबीआई दिसंबर के महीने में ब्याज दरों में कोई बदलाव करेगा. वैसे अक्टूबर के महीने में आरबीआई गवर्नर ने आरबीआई के रुख में बदलाव किया था और कहा था कि आने वाले दिनों में कभी ब्याज दरों में कटौती जा सकती है. लेकिन अक्टूबर महीने के महंगाई के आंकड़ों ने आरबीआई को एक बार फिर से सोच में डाल दिया है. अक्टूबर में रिटेल महंगाई का आंकड़ा 6.20 फीसदी से ऊपर पहुंच गया था.

LIC के पास पड़ी है जनता की 880.93 करोड़ रुपये की अनक्लेम्ड रकम, कहीं ये आपकी तो नहीं? ऐसे करें चेक

एलआईसी की अनक्लेम्ड रकम उन प्रीमियम भुगतानों को बताती है जो पॉलिसीधारकों द्वारा नहीं लिए गए हैं।

बीमा कंपनी भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) के पास वित्त वर्ष 2023-24 (FY24) में 880.93 करोड़ रुपये की अनक्लेम्ड मैच्योरिटी रकम है। यह जानकारी सरकार ने संसद में दी। लोकसभा में एक लिखित जवाब में एक मंत्री ने बताया कि 3,72,282 पॉलिसीधारकों ने अपनी मैच्योरिटी रकम का दावा नहीं किया है।

एलआईसी की अनक्लेम्ड रकम?

ईसी की अनक्लेम्ड रकम उन प्रीमियम भुगतानों को बताती है जो पॉलिसीधारकों द्वारा नहीं लिए गए हैं। अगर पॉलिसीधारक ने तीन साल या उससे अधिक समय तक बीमा कंपनी से कोई लाभ नहीं लिया है, तो इस रकम को अनक्लेम्ड माना जाता है। ऐसा तब होता है, जब पॉलिसी मैच्योर हो जाती है, प्रीमियम भुगतान बंद हो जाते हैं या पॉलिसीधारक की मृत्यु हो जाती है।

क्लेम्ड खातों के लिए नियम

अनक्लेम्ड रकम 10 साल या उससे अधिक समय तक क्लेम के बिना रहती है, तो पूरी रकम सरकार के वरिष्ठ नागरिक कल्याण कोष (Senior Citizen Welfare Fund) में ट्रांसफर कर दी जाती है।

चेक करें एलआईसी की अनक्लेम्ड रकम?

  • एलआईसी की आधिकारिक वेबसाइट https://licindia.in/home पर जाएं।
  • होमपेज पर ‘कस्टमर सर्विस’ ऑप्शन पर क्लिक करें।
  • ‘पॉलिसीधारकों की अनक्लेम्ड रकम’ विकल्प चुनें।
  • पॉलिसी नंबर, नाम, जन्मतिथि और पैन कार्ड नंबर जैसी जानकारी दर्ज करें।
  • जानकारी सबमिट करने पर अनक्लेम्ड रकम का विवरण प्राप्त करें।

करें एलआईसी की अनक्लेम्ड रकम का क्लेम?

  • किसी भी एलआईसी ऑफिस से या एलआईसी की वेबसाइट से क्लेम फॉर्म लें।
  • जरूरी डॉक्यूमेंट, जैसे पॉलिसी डॉक्यूमेंट, प्रीमियम रसीद और यदि जरूरी हो, मृत्यु प्रमाणपत्र कलेक्ट करें।
  • फॉर्म और दस्तावेजों को एलआईसी ऑफिस में जमा करें।
  • एलआईसी आपके क्लेम की जांच करेगी और स्वीकृति के बाद अनक्लेम्ड रकम जारी करेगी।

ईसी अनक्लेम्ड और पेंडिंग क्लेम को कम करने के लिए कई कदम उठा रही है। जिसके लिए प्रिंट और डिजिटल मीडिया में विज्ञापन के साथ रेडियो जिंगल में इस बात का जिक्र किया जा रहा है। इन प्रयासों का उद्देश्य पॉलिसीधारकों को उनकी रकम का क्लेम करने के लिए प्रोत्साहित करना है।

Mutual Fund: 2025 में इन उभरते ट्रेंड्स पर रखें नजर, एक्सपर्ट्स से समझें- किस थीम पर बनेगा मुनाफा, कैसे बनाएं स्ट्रैटजी

 में म्युचुअल फंड इंडस्ट्री में आने वाले साल में भी तेजी जारी रहने की उम्मीद है। नए प्रकार के फंड्स, जैसे डाइवर्सिफाइड और थीम-बेस्ड फंड, लोकप्रिय हो रहे हैं।

 fund’s upcoming trends: भारत में म्युचुअल फंड उद्योग तेजी से आगे बढ़ रहा है और बदलाव के दौर से गुजर रहा है। इस साल घरेलू शेयर बाजार में काफी उतार-चढ़ाव देखने को मिला। इसके बावजूद म्युचुअल फंड्स, खासकर इक्विटी स्कीम्स में निवेशकों का भरोसा बना हुआ है। इस साल नवंबर में लगातार 45वें महीने इक्विटी फंड्स में इनफ्लो रहा, हालांकि अक्टूबर के मुकाबले इसमें लगभग 14 प्रतिशत की गिरावट आई है। जैसे-जैसे हम 2025 की ओर बढ़ रहे हैं, कई उभरते हुए ट्रेंड्स इसके भविष्य को आकार दे रहे हैं। एक्सपर्ट्स का मानना है कि 2025 में म्युचुअल फंड इंडस्ट्री में कुछ ऐसे ट्रेंड्स देखने को मिलेंगे, जिनमें इंडस्ट्री के साथ-साथ निवेशकों का भरोसा बढ़ा दिखाई दे सकता है।

सेक्टोरल एंड थीमैटिक फंड्स की बढ़ रही लोकप्रियता

रल एंड थीमैटिक फंड्स तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं। ये फंड्स खास उद्योगों जैसे हेल्थकेयर, मैन्युफैक्चरिंग, डिजिटल टेक्नोलॉजी और रिन्यूएबल एनर्जी आदि पर फोकस करते हैं। जैसे-जैसे इन क्षेत्रों में बड़ा विकास हो रहा है, निवेशक इनका फायदा उठाना चाहते हैं।

A Money के को-फाउंडर आनंद के राठी कहते हैं,  ज्यादातर नई और पुरानी एसेट मैनेजमेंट कंपनियां (AMCs) इन फंड्स को लॉन्च कर रही हैं, और यह ट्रेंड आने वाले समय में और बढ़ सकता है। अगर आप उभरते हुए सेक्टर्स में निवेश करना चाहते हैं, तो सेक्टोरल एंड थीमैटिक फंड्स एक अच्छा विकल्प हो सकते हैं।

सिएशन ऑफ म्युचुअल फंड्स इन इंडिया (AMFI) के आंकड़ें भी इसी तरफ इशारा करते हैं। नवंबर में सबसे ज्यादा इनफ्लो सेक्टोरल एंड थिमैटिक फंड में हुआ है। बीते महीने इस कैटेगरी में 7,657 करोड़ रुपये का निवेश है। हालांकि, अक्टूबर और सितंबर के मुकाबले निवेश में कमी आई है। इस साल अक्टूबर में सेक्टरल एंड थिमैटिक फंड में 12,278 करोड़ जबकि सितंबर में 13,254 करोड़ रुपये का इनफ्लो दर्ज किया गया था।

निवेशकों को लुभा रहा फ्लेक्सी-कैप फंड

परफॉर्मेंस फंड्स की बात करें तो पिछले महीने सेक्टोरल फंड्स के बाद सबसे ज्यादा निवेश फ्लेक्सी कैप स्कीम्स में आया। निवेशकों ने करीब 5,084.11 करोड़ रुपये का निवेश इस कैटेगरी की स्कीम्स में किया।

फ्लेक्सी कैप फंड्स एक तरह के इक्विटी म्यूचुअल फंड्स होते हैं, जहां फंड मैनेजर को किसी एक खास मार्केट कैप (जैसे लार्ज, मिड या स्मॉल) में निवेश करने की सीमा नहीं होती। फंड मैनेजर को यह पूरी आजादी होती है कि वह बदलते बाजार के हिसाब से पोर्टफोलियो को एडजस्ट कर सकते है। यह फंड्स निवेशकों के लिए अच्छे हैं क्योंकि इसमें वे अलग-अलग आकार के कंपनियों में निवेश कर सकते हैं। यही कारण है कि ये फंड्स 2025 में और ज्यादा लोकप्रिय होने की उम्मीद है।

आनंद राठी वेल्थ लिमिटेड के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर और यूनिट हेड अमिताभ लारा बताते हैं, आजकल ज्यादातर फ्लेक्सी कैप फंड्स अपने 60% निवेश को लार्ज कैप कंपनियों में रखते हैं और बाकी का निवेश मिड और स्मॉल कैप में किया जाता है। इस कैटेगरी में बेहतर रिटर्न बनाने की काफी क्षमता है। पिछले 5 सालों में फ्लेक्सी कैप फंड्स ने निफ्टी 50 के मुकाबले औसतन 6 से 7% ज्यादा रिटर्न दिया है। पिछले 5 कैलेंडर वर्षों में 60% फ्लेक्सी कैप फंड्स ने निफ्टी 50 को पीछे छोड़ते हुए 6.6% का औसत रिटर्न दिया है।

म्युचुअल फंड में SIP के माध्यम से खुदरा निवेशकों की बढ़ रही भागीदारी

और अहम ट्रेंड है म्युचुअल फंड बाजार में खुदरा निवेशकों की बढ़ती भागीदारी। जैसे-जैसे म्युचुअल फंड्स तक पहुंच ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स और सिस्टमेटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (SIP) योजनाओं के जरिए आसान हो रही है, वैसे-वैसे और अधिक खुदरा निवेशक इस बाजार में प्रवेश कर रहे हैं।

मैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान के जरिए निवेशक जमकर पैसा लगा रहे हैं। SIP इनफ्लो की बात करें तो नवंबर में लगातार दूसरे महीने 25,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का निवेश बना हुआ है। यह संकेत देता हैं कि जियोपॉलिटिकल टेंशन, यूएस चुनाव के नतीजों समेत कई अन्य वजहों से भारी उतार-चढ़ाव के बीच रिटेल निवेशक म्युचुअल फंड्स पर बुलिश हैं।

I के मुताबिक, नवंबर में SIP इनफ्लो 25,320 करोड़ रुपये रहा। अक्टूबर में यह आंकड़ा 25,323 करोड़ रुपये ​था। जबकि, सितंबर में SIP इनफ्लो 24,509 करोड़ और अगस्त में 23,547 करोड़ रुपये दर्ज किया गया था।

फिनकैप के डायरेक्टर एके निगम के मुताबिक, भारत में SIP निवेश में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। मार्च 2024 तक, SIP योगदान 18,000 करोड़ रुपये प्रति माह तक पहुंच गया, जो 2018 में 8,000 करोड़ रुपये था। खास बात यह है कि 2020 में कोरोना महामारी के समय बाजार में आई गिरावट के दौरान भी 70% से अधिक रिटेल SIP निवेशकों ने अपने निवेश जारी रखे, जो SIP में उनके विश्वास को दर्शाता है। यह दिखाता है कि सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट के फायदों को समझते हुए रिटेल निवेशकों की भागीदारी लगातार बढ़ रही है।

अलावा, वित्तीय जागरूकता बढ़ रही है, और लोग म्युचुअल फंड्स को लंबी अवधि में संपत्ति बनाने का एक महत्वपूर्ण तरीका समझने लगे हैं। खुदरा निवेशकों की यह बढ़ती भागीदारी आगे भी जारी रहने की उम्मीद है, जिससे निवेश के अवसर और अधिक लोगों तक पहुंचेंगे।

मल्टी-एसेट और डायवर्सिफाइड फंड पर जोर

निगम का मानना है कि 2025 में एक महत्वपूर्ण ट्रेंड मल्टी-एसेट और डाइवर्सिफाइड फंड्स का हो सकता है। जैसे-जैसे बाजार में उतार-चढ़ाव बढ़ेगा, निवेशक अपना जोखिम विभिन्न एसेट्स जैसे शेयर, बॉन्ड, गोल्ड और रियल एस्टेट में बांटने की कोशिश करेंगे।

एसेट फंड्स निवेशकों को इन सब में निवेश करने का मौका देते हैं, जिससे निवेश का जोखिम कम होता है और विकास की संभावना बढ़ती है। जैसे-जैसे लोग निवेश के बारे में ज्यादा समझने लगे हैं, वे अपने निवेश को सुरक्षित रखने के लिए इन फंड्स में हिस्सा डालेंगे।

ज्यादा जोखिम वाले निवेश प्रोडक्ट बढ़ेंगे

2025 में स्मॉल कैप, थीमैटिक फंड्स जैसे अधिक जोखिम वाले निवेश उत्पाद बढ़ेंगे, जो ज्यादा रिटर्न की तलाश करने वाले निवेशकों को आकर्षित करेंगे। ESG निवेश बढ़ेगा, क्योंकि अधिक लोग नैतिक निवेश को प्राथमिकता देंगे। टेक्नोलॉजी म्युचुअल फंड प्रबंधन को बदल देगी, जिससे निवेश करना और भी आसान और सुलभ होगा। साथ ही, डिजिटल प्लेटफॉर्म्स का प्रभुत्व बढ़ेगा, जो म्युचुअल फंड वितरण को एक सहज, हाइब्रिड अनुभव में बदल देंगे।

Muntual Fund: 2025 में क्या हो निवेश्स्ट्र टेजी

द के राठी के मुताबिक, निवेशकों को सबसे पहले अपने निवेश को लार्ज, मिड और स्मॉल कैप फंड्स के बीच  डायवर्सिफाई फरने पर ध्यान देना चाहिए। जब उनका पोर्टफोलियो इन फंड्स में पर्याप्त रूप से डाइवर्सिफाइड हो जाए और कुल निवेश का लगभग 30% इसमें लग जाए, तो वे सेक्टोरल एंड थीमेटिक फंड्स जैसी नई कैटेगरी में निवेश करना शुरू कर सकते हैं। यह उनके मुख्य पोर्टफोलियो में एक वैल्यू एडिशन हो सकता है।

निगम निवेश जल्दी शुरू करने और कंपाउंडिंग की पावर पर जोर देते हुए निवेशकों को SIP के माध्यम से लगातार निवेश करने की सलाह देते हैं। उदाहरण के लिए, अगर आप 12% के सालाना रिटर्न पर 20 साल के लिए हर महीने 5,000 रुपये निवेश करते हैं, तो यह राशि लगभग 50 लाख रुपये तक पहुंच सकती है। लेकिन अगर आप 10 साल देरी से शुरू करते हैं, तो यही निवेश सिर्फ 15 लाख रुपये तक ही पहुंच पाएगा। यह दिखाता है कि समय और अनुशासन से निवेश में बड़ा फर्क पड़ता है।

निक वेल्थ के को-फाउंडर एंड सीईओ श्रीकांत सुब्रमण्यम के मुताबिक, फ्लेक्सी कैप में निवेश उन निवेशकों के लिए फायदेमंद है, जिनके पास समय की कमी है और जो बार-बार लार्ज कैप, मिड कैप और स्मॉल कैप में निवेश बदलने की झंझट से बचना चाहते हैं।

ताभ लारा की सलाह है कि सिर्फ एक ही कैटेगरी पर फोकस करना सही रणनीति नहीं है। निवेशकों के लिए यह जरूरी है कि वे लार्ज कैप, मिड कैप, स्मॉल कैप, मल्टी कैप और फ्लेक्सी कैप जैसे अलग-अलग मार्केट कैप बेस्ड फंड्स के अलावा वैल्यू, कॉन्ट्रा और फोकस्ड फंड्स जैसे स्ट्रैटेजी बेस्ड फंड्स में भी निवेश करें। इससे आपको पोर्टफोलियो में अलग-अलग सेक्टर्स और मार्केट कैप्स का फायदा मिलेगा और साथ ही कंसन्ट्रेशन रिस्क (कहीं एक ही फंड या एएमसी में ज्यादा निवेश का खतरा) भी कम होगा।

मिलाकर देखें तो, भारत में म्युचुअल फंड इंडस्ट्री में आने वाले साल में भी तेजी जारी रहने की उम्मीद है। नए प्रकार के फंड्स, जैसे डाइवर्सिफाइड और थीम-बेस्ड फंड, लोकप्रिय हो रहे हैं। छोटे निवेशक भी बड़ी संख्या में जुड़ रहे हैं, और पर्यावरण, सामाजिक और गवर्नेंस (ESG) पर ध्यान देने वाले फंडों में रुचि बढ़ रही है। टेक्नोलॉजी म्युचुअल फंड को अधिक सुलभ और लचीला बना रही है, और नए निवेश विकल्प खास सेक्टर्स पर ध्यान दे रहे हैं। चाहे आप अनुभवी निवेशक हों या शुरुआत कर रहे हों, आने वाले साल निवेश करने और अपने वित्तीय लक्ष्यों को पाने के लिए रोमांचक अवसर लाएंगे।

क्या बच्चों की प्रॉपर्टी पर होता है मां-बाप का हक ? पढ़ें क्या कहता है कानून

Children Property: मां-बाप की संपत्ति पर तो बच्चों का हक होता है, लेकिन क्या माता-पिता भी अपने बच्चों की प्रॉपर्टी पर हक जता सकते हैं? देश के कानून में इसका जिक्र है .

Children Property: माता-पिता की संपत्ति पर बच्चों का अधिकार होता है, लेकिन क्या बच्चों की संपत्ति पर भी मां-बाप का हक होता है ? कानून इस बारे में क्या कहता है इसे लेकर हम आपको पूरी जानकारी देने जा रहे हैं.

क्या कहता है कानून

देश का कानून कहता है कि माता-पिता अपने बच्चों की संपत्ति पर दावा नहीं ठोक सकते हैं. हालांकि, कुछ विशेष परिस्थितियों में माता-पिता अपने बच्चों की जायदाद पर अपना हक जता सकते हैं. सरकार ने हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में 2005 में किए संशोधन में इसका जिक्र किया. आइए जानते हैं किन स्थितियों में माता-पिता अपने बच्चों की प्रॉपर्टी पर अपना अधिकार जता सकते हैं.

मां पहली वारिस

कानून कहता है कि अगर बच्चे की किसी दुर्घटना में या बीमारी से असामयिक मौत हो जाती है, तो माता-पिता को उसकी संपत्ति पर अधिकार मिलता है. इसके अलावा, अगर बच्चा बालिग और अविवाहित है, तो इस स्थिति में भी किन्ही परिस्थितियों में उसकी मृत्यु हो जाने पर उसकी प्रॉपर्टी का हक उसके माता-पिता को मिलता है. हालांकि, इस दौरान भी माता-पिता को संपत्ति का पूरा अधिकार नहीं मिल जाता है, बल्कि दोनों के अलग-अलग अधिकार होते हैं.

न्यूज 18 की एक रिपोर्ट के मुताबिक बच्चे की संपत्ति पर अधिकार जताने का पहला हक मां को दिया जाता है. मां ही पहली वारिस मानी जाती है. जबकि पिता दूसरी वारिस है. अगर मां भी नहीं है, तो उस स्थिति में जायदाद पर पूरा हक पिता को मिलता है. ऐसा इसलिए क्योंकि कई बार उत्तराधिकारी के रूप में जायदाद पर हक जताने के लिए कई लोग आ जाते हैं, तब सभी को बराबर का हक दिया जाता है.

बेटा और बेटी के लिए अलग कानून

अगर लड़का है और शादीशुदा नहीं है, तो उसके न होने की स्थिति में उसकी संपत्ति पर पहला हक उसकी मां का होगा, जबकि पिता दूसरा वारिस माना जाएगा. मां न हो तो पिता और अन्य वारिसों में प्रॉपर्टी बांट दी जाएगी.

लड़का अगर शादीशुदा है, तो उसकी मृत्यु होने पर संपत्ति पर पूरा हक उसकी पत्नी का होगा. वहीं अगर बेटी शादीशुदा है और किसी वजह से उसकी मृत्यु हो गई है, तो उसकी संपत्ति पर पहला हक बच्चों को मिलेगा, बच्चे न हो तो पति को मिलेगा और आखिर में मां-बाप का नंबर आएगा.

Leave a Comment