मालती जी और हंसिका की बहस जोरों पर थी और 45 मिनट हो गए थे। दोनों ने ही अपने-अपने तरीके से बातों को जारी रखा था। वरुण के पेट में चूहे कूद रहे थे। पड़ोसी मजे ले रहे थे और इतने में मालती जी बोल पड़ीं, ‘हर घर में सिर्फ एक ही गुंडा होता है, और इस घर का गुंडा मैं हूं।’ फिल्म ‘चक दे इंडिया’ में शाहरुख खान द्वारा बोला गया डायलॉग इस तरह सुनकर सभी दंग रह गए। पड़ोसी, हंसिका, वरुण सभी ने एक दूसरे को और फिर मालती जी को देखा और ठहाका लगा दिया। मालती जी को खुद भी लगने लगा कि ज्यादा हो गया।
‘गुंडा-गुंडा-गुंडा… मैं गुंडा…’ मालती जी मन ही मन सोचने लगीं। बेचारी झेंप गईं और पड़ोसी हंसते-हंसते चले गए। मालती जी अपना सा मुंह लेकर बैठ गईं। हंसिका ने किचन में सब साफ किया और फिर आ गई मालती जी के लिए फ्रेश चाय लेकर।
‘पुराना चाय का बर्तन कोयले जैसा काला हो गया है, अब नए वाले में चाय बनेगी।’ हंसिका ने चाय पकड़ाते हुए कहा। ‘दाल भी चढ़ा दी है। पुरानी दाल तो गई नाली में।’ हंसिका ने अपनी बात पूरी की। हंसते हुए मालती जी ने कहा, ‘अब तो बस यही बाकी रह गया है। पुराना सब कुछ फेंक दो।’ हंसिका की समझ में आ गया कि माजरा क्या था।
दरअसल, हंसिका ने अपनी उधेड़बुन में यह समझा ही नहीं कि मालती जी के मन में क्या था। वह क्यों ऐसा व्यवहार कर रही थीं। वरुण छोटा ही था जब मालती जी विधवा हो गईं। बच्चों को अकेले पाला, दूसरी शादी करने के बारे में कैसे सोच सकती थीं। मालती जी ने अपना साथी सिनेमा को ही बना लिया। एक के बाद एक अपने दुख छुपाती गईं और बच्चों के लिए सिनेमा का सहारा लेकर आगे बढ़ती गईं। अब जब ननद की शादी हो गई और वरुण ने भी घोड़ी चढ़ ली, तब उन्हें एक बार फिर अकेलापन महसूस होने लगा था। मालती जी के लिए बस यही एक समस्या थी कि कहीं उनकी जिंदगी फिर से वीरानी ना हो जाए।
‘मैं आपके घर में आई हूं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि आपके बेटे को आपसे अलग कर दूंगी।’ हंसिका ने साथ बैठकर चाय पीते हुए कहा। ‘मैं समझ सकती हूं कि आप क्या सोच रही हैं, लेकिन एक बार मेरी तरफ से भी समझने की कोशिश कीजिए। मैं भी ऑफिस और घर के काम के बीच दबी जा रही हूं। जब से आई हूं, आपके मुंह से प्यार भरा एक शब्द नहीं सुना, क्या आपको लगता है कि मैं ऐसे ही रह सकती हूं?’ हंसिका ने कहा।
‘मैं अपना घर बार छोड़कर यहां आई, लेकिन क्या आपको नहीं लगता कि मुझे भी उसी प्यार और आदर की जरूरत है जैसी आपको है। वरुण को आप मेरे साथ अकेले समय बिताने नहीं देतीं, देर रात कर उसे लेकर फिल्में देखती रहती हैं। क्या मुझे यह अच्छा लगता होगा?’ आज हंसिका अपने दिल की बात मालती जी से कह रही थी।
‘नहीं, मैंने जो किया गलत किया। मैं नहीं समझ पा रही थी कि तुम्हारे आने के बाद मेरी जिंदगी कैसी हो जाएगी। मैं बस नहीं चाहती थी कि मेरा वजूद सिर्फ उस टीवी की तरह हो जाए जिसे लोग अपने एंटरटेनमेंट के लिए इस्तेमाल करते हैं। मैं बस पता नहीं क्या सोच रही थी। खुद मैं भी शर्मिंदा हूं बेटी। मैं ऐसी नहीं हूं, फिल्मी जरूर हूं, लेकिन फिल्मी सास नहीं हूं।’ मालती जी ने आंखों में आंसू भरकर कहा।
‘चलिए आज मैं और आप दोनों ही इस रिश्ते को दोबारा शुरू करते हैं। फिर से फिल्मी बन जाते हैं। मैं और आप दोनों ही कुछ खास करते हैं।’ हंसिका ने कहा। ‘क्या खास करेंगे हम?’ मालती जी ने पूछा। ‘स्त्री 2′ लगी है, चलिए दोनों स्त्रियां फिल्म देखकर आ जाएं।’ हंसिका ने मुस्कुराते हुए कहा।
‘बस इसके बाद और कुछ नहीं चाहिए।’ पीछे से वरुण बोला। उसके हाथ में समोसे, छोले, कुल्चे से भरे हुए पैकेट्स थे। उनकी महक से पूरा घर भर गया। ‘दोनों लोग काम ना करो, ठंडे हो जाओ और गरमा-गरम नाश्ता करो। इतना पेट भर लो कि पॉप कॉर्न खाने की भी जगह ना बचे।’ वरुण ने कहा।
‘मोगैम्बो खुश हुआ…’ दोनों के मुंह से निकला। बस यही था दोनों की जिंदगी का फसाना, एक नया नगमा तो एक पुराना।